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CSBS SELF Dev. Course

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रफ्तार का कहर

आलेख रफ्तार का कहर हमें आजाद हुए 75 साल हो गए मगर आज भी विशेषकर इंदौर में बड़े वाहनों , हेवी कमर्शियल व्हीकलस द्वारा चाहे वह डंपर हो ट्रक , हो दोपहिया वाहनों के वाहको को पीछे से असावधानी या स्पीड पर नियंत्रण न कर पाने के कारण टक्कर मारी जाती है और फिर उन्हें वैसी ही अवस्था में छोड़कर अधिकांश ड्राइवर या तो स्पाट से भाग जाते हैं या अगर जनता पकड़ लेती है तो उन्हें मारपीट से सबक सिखा कर पुलिस के हवाले कर देती है , परंतु इंडियन पैनल कोड की दफा 304 के तहत जो मुकदमा बनता है उसमें ऐसे गुनहगारों की जमानत थाने पर ही हो जाती है वस्तुतः आईपीसी की धारा 304 का कानून अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था क्योंकि अंग्रेजों के शासन में अधिकांशतः चार पहिया वाहन अंग्रेजों के ही होते थे तो उनके ड्राइवरों को विशेष रूप से दुर्घटना और मशीनरी फेल होने का लाभ देकर हत्या के आरोप से मुक्त करने के लिए गैर इरादतन हत्या का कानून बनाया गया जिसका फायदा आज तक हिंदुस्तान में गाड़ी चलाने वाले गुनहगार ड्राइवरों को मिल रहा है इस कानून को शीघ्र ही बदला जाना चाहिए और इंदौर में या शहरी क्षेत्रों में भारी वाहनों की रफ्तार 30 किलोमीट

प्रवासी मजदूर

ब्लाग कितने दुख , कष्ट और मानसिक पीड़ा की बात है कि फिर एक साल बाद कोविड के प्रकोप के कारण लाकडाउन होने से प्रवासी मजदूर अपने घर लौटने लगे हैं थोड़ी सी राहत की बात यह है कि वे पैदल नहीं जा रहे हैं बल्कि उन्हें जो भी यात्रा का साधन मिल रहा है उससे वे घर लौट रहे हैं परंतु हो सकता है आने वाले समय में स्थिति और भयावह हो जाए पिछली बार भी मैंने यह सुझाव दिया था कि प्रवासी मजदूरों को रहने के लिए स्थान मुहैया करवाया जाना चाहिए वे जिस भी फैक्ट्री में , कारखाने में या दुकानों में काम करते हैं उनके मालिकों की जिम्मेदारी है कि वे प्रवासी मजदूरों को रहने की जगह उपलब्ध करवाएं परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ और जब मजदूरों को लगा कि रहने की बात तो छोड़ो उनके खाने-पीने की भी कोई व्यवस्था नहीं हो रही है तो वे दुखी मन से अपने गांव या घर लौटना चाह रहे हैं । यह बहुत ही चिंता का विषय है। आज भी रोजनदारी पर काम करने वाले मजदूर लावारिस ही हैं हम भले ही प्रोविडेंट फंड या ईएसआईसी की योजना देश में चला रहे हैं लेकिन धरातल पर ऐसी व्यवस्थाएं क्यों नहीं है यहां तक की रोजनदारी पर मकान बनाने के काम करने करवाने वाला ठेकेदार

मिलवटों के जहर

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Samiksha

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 फिल्म "छलांग " एक ब्लेक कामेडी फिल्म है जो दिनांक 13 नवम्बर 2020 के दिन प्राईम विडियो ओटीटी पर रिलिज हुई । यह एक बेहतरीन फिल्म है इसे परिवार सहित देखा जा सकता है ।फिल्म में बच्चों को खेल शिक्षा भी दीए जाने पर जोर दिया गया है । कहानी का एंबियांस है हरियाणा का झज्जर शहर जहां एक हायर सेकेंडरी स्कूल है इसमें एक गेम्स टीचर है जिसका नाम है महेंद्र (राजकुमार राव) प्यार से जिसे सब मोन्टू कहते हैं , हालांकि मोंटू की शिक्षा इसी स्कूल में हुई और स्कूल के प्रिंसिपल श्रीमती उषा गहलोत ( इला अरुण)उसके प्रति विशेष स्नेह रखती है । मोंटू के पिता जो एक वकील (सतीश कौशिक) हैं के कहने पर या की सिफारिश पर उसे गेम्स टीचर की.नौकरी पर रख लिया जाता है हालांकि मोंटू एक एथलीट्स है और शहर के लिए कहें या स्टेट के लिए दौड़ा भी है और पुरस्कृत भी किया गया है । स्कूल में मोंटू अपने हिसाब से अपने ज्ञान से बच्चों को फिजिकल ट्रेनिंग देते हैं और गेम्स वगैरह सिखाते हैं परंतु उनके पास कोई वोकेशनल क्वालिफिकेशन नहीं है इसी दरमियान स्कूल में शहर की एक लड़की नीलम (नुशरत भरुचा) का कम्प्यूटर शिक्षक के पद पर अपॉइंटमे